श्री श्याम सुंदर गोस्वामी द्वारा व्याख्यान
यह मुख्य रूप से श्री गोस्वामी द्वारा व्याख्यान और अन्य वाचन का संग्रह है । ये उनके जीवन की अंतिम दशकों (१९४९-१९७८) के दौरान स्वीडन में आयोजित हुए थे । ये कालातीत हैं, और योग के कई अलग-अलग पहलुओं से सम्बंधित हैं ।
ये व्याख्यान मूल रूप से संशोधित नहीं हैं । ये शॉर्टहैंड टेक्स्ट से निहित हैं और एक सबसे उत्साही और वफादार छात्र स्वर्गीय मनोवैज्ञानिक गर्ट्रूड लुंडेन द्वारा दो खंड के संकलन में एकत्र किये गये हैं, और इन के लिए गोस्वामी योग संस्थान का उन्हें हार्दिक आभार है ।
एक असली योग गुरु की सहज वार्ता को संरक्षित करने के लिए, इस कार्य में पूर्ण संपादन की दिशा में कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया है, और इस कार्य के लिए उचित श्रेय और धन्यवाद जाता है जिम अर्ल को जिन्होने अधिकतर इस कार्य को संपूर्ण किया । हमारा उद्देश्य है कि भविष्य में अतिरिक्त व्याख्यान प्रस्तुत किए जायेंगे ।
कई व्याख्यान योग के पारिभाषिक पहलुओं को शब्दों और अभिव्यक्तियों के साथ वर्णित करते हैं जिन्हें समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन योग के विषय के लिए ये आवश्यक हैं । श्री गोस्वामी एक ऐसी शब्दावली का उपयोग करते हैं जो कभी-कभी रहस्यमय और असामान्य लगती है, खासकर जब वह गूढ़ चित्त-तन संबंधी वर्णन करते हैं । इसके बावजूद, उनके पास सारहीन पहलुओं की कल्पना करने की अनोखी क्षमता थी और साथ ही उन्हें एक बौद्धिक स्तर तक नीचे ले आने की भी क्षमता उनके पास थी । अपने व्याख्यान में वह पारंपरिक व्याख्याता की तुलना में अपने को पारंपरिक ऋषि की तरह अधिक अभिव्यक्त कर सकते थे ।
“कला के इतिहास में प्रतिभा बहुत दुर्लभ घटन है । हालाँकि, इससे भी दुर्लभ, उस प्रतिभा के सक्षम रिपोर्टर और रिकॉर्डर हैं । दुनिया में कई सैकड़ों सराहनीय कवि और दार्शनिक हुए हैं, लेकिन इन सैकड़ों में से बहुत कम लोगों को बोसवेल या एकरमैन को आकर्षित करने का सौभाग्य मिला है । जब हम कला के क्षेत्र को छोड़ आध्यात्मिक धर्म की ओर देखते हैं, तो सक्षम रिपोर्टरों की कमी और भी अधिक दृढ़ता से चिह्नित हो जाती है। ”
एल्डस हक्सले (श्री रामकृष्ण का सुसमाचार)
योग की पारिभाषिक दुनिया में प्रवेश करने से पहले, और एक मूलभूत ज्ञान प्राप्त करने के लिए, नीचे दिए गए परिचयात्मक टेक्स्टों को पढ़ना उपयोगी हो सकता है । संस्कृत शब्दों का प्रतिपादन करने के लिए ध्वनि-संबंधी प्रतिलेखन का उपयोग किया गया है ।
परिचय
योग पर
- Darshana – Hinduism’s Six Schools of Thoughts (I. 2)
- Yoga – A pragmatic Philosophy (I.1)
- The Practical Aspect of Yoga Darshana (I.3)
- Why do we Need to Practice (Hatha) Yoga? (I.4)
- Yoga, A Pragmatic Philosophy … part 2 (II.2)
- Philosophy: A means to Liberation (II.6)
- The Awakening of the Self (II.3)
अष्टांग योग (हठ योग में)
- Yama and Niyama (II.43-45)
- Asana (from Advanced Hatha Yoga/S. S. Goswami)
- Pranayama (from Foundations of Yoga/B. Catoméris)
- Prathyâhâra (from Foundations of Yoga/B. Catoméris and Advanced Hatha Yoga/S. S. Goswami)
- Dhârâna, Dhyâna, Samâdhi (from Foundations of Yoga/B. Catoméris and Advanced Hatha Yoga/S. S. Goswami)
हठ योग पर
- The Art of Relaxation (II.42)
- Towards a Harmonious Balanced Being (I.5)
- Hatha Yoga – The Science of Body and Mind (I.15)
ध्यान पर
- Sense Perception and Concentration (I.28)
- What is Concentration? (I.29)
- Pointers to Mental Concentration (I.30)
- Concentration and its Objects (I.31)
- Outlines on Concentration (I.32)
- Concentration for Spiritual and Secular Use (I.38)
- The Physical Action of Mental Concentration (I.39)
- Samskâras, Dreams, Sleep and Concentration (II.14)
- Minds Three Standard States (II.12-14, 16)
गतिशील तथा स्थितिशील
- Motional – Non-motional Dualism (I.6)
- The Physical, Pranic and Mental Aspects in Human Beings (I.7)
- The Significance of Ha and Tha in Hatha Yoga (I.8)
- Boosting Energy via Pranayama (I.9)
नियंत्रण की शक्ति
- Elements of Yogic Epistemology (II.47)
- Thoughts (I.48)
- Transcending the Sensorial (II.4)
- The Intellectual and the Spiritual (II.5)
- A Permanent Interaction of the Three Gunas (I.33)
भोजन का पाचन तथा अंतर्लयन
चित्त-काया का संबंध
- The Body – Temple of God (I.13)
- The Specific Advantages of Hatha Yoga (I.14)
- Body and Mind Intimacy (I.10)
- Mind, Time, Space, Purity (I.11)
- The Background to Mind-Body Relation (I.16)
- Physical Motionlessness and Mind (II.37)
- The Karmendriyas – The Acting Senses (I.40)
- Body Purification in Hatha Yoga (I.42)
भक्ति योग
पुनर्जन्म
सृष्टि के विभिन्न स्तर
- Different Levels of Creation According to Hindu Cosmogony (I.17)
- Prâna – Para (Supreme) Bindu – Âkâsha (I.18)
- Cosmological Elements: Supreme Bindu, Infinity, Three Gunas (I.19)
- Kâmakalâ- Prâna – Bindu – Aum I.20)
- Transformation of Matter into Mental Images (I.21)
- Mahat and Ahang, Bhoga and Moksha (I.22)
- The Nascent Rise of Cosmos and Mind (I.23)
- Further Evolution (I.24)
- Mechanisms of Sensory Knowledge (I.25)
- From Bindu as Power to Elementary Particles (I.26)
- The Last Stage of Evolution (I.27)
अन्य पठन
One Hour of Yoga Practice in Daily Life
श्याम सुन्दर गोस्वामी
Introduction to a Biography on Tailanga Swami
श्याम सुन्दर गोस्वामी
What is the Background of Love?
श्याम सुन्दर गोस्वामी
On Religion and Love for Humankind
(लययोग किताब का अंश)
श्याम सुन्दर गोस्वामी
Tibet’s Fall
श्याम सुन्दर गोस्वामी
The Advent of Jesus Christ
श्याम सुन्दर गोस्वामी
Offhand Talk
श्याम सुन्दर गोस्वामी
Memories of Eternal Bliss
श्याम सुन्दर गोस्वामी
On Fasting
हेनरिक लेवकोवेट्ज़ (एस. एस. गोस्वामी) द्वारा संकलित
On Initiation (diksha)
श्याम सुन्दर गोस्वामी
On Ancient Indian Scriptures
श्याम सुन्दर गोस्वामी
The I Being Lost
श्याम सुन्दर गोस्वामी
On Svadharma – The Individual Dharma
श्याम सुन्दर गोस्वामी
The Inner Self
श्याम सुन्दर गोस्वामी
Notes on Sri S S Goswami’s Exposition of Yoga Sadhana
बासील पी कैटोमेरीस
Hindu Cosmogony
बासील पी कैटोमेरीस
On Karma
बासील पी कैटोमेरीस
On Dharma
बासील पी कैटोमेरीस
On Shankalpa
बासील पी कैटोमेरीस
On Religion
बासील पी कैटोमेरीस
On Shakti and Shaktas
बासील पी कैटोमेरीस
On Guru Yoga
बासील पी कैटोमेरीस
Letter to an Indian Chela
बासील पी कैटोमेरीस
Notes on Self-Deceit
बासील पी कैटोमेरीस
Yogic Theory and Quantum Physics
हेनरिक लेवकोवेट्ज़
Annotations on Sangskâras
बासील पी कैटोमेरीस
The Seven Step Path of Bhakti
बासील पी कैटोमेरीस
Know Thyself
बासील पी कैटोमेरीस
The Sacred Syllable OM
जॉर्ज फुएरस्टाईन